सार
भगवान श्री कृष्ण लला विराजमान व शाही मस्जिद ईदगाह पक्षों के मध्य लंबित वाद में हाईकोर्ट ने वाद की पोषणियता मामले में मंदिर पक्ष में फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत ने की। हाईकोर्ट में 12 अगस्त से सिविल वादों की सुनवाई शुरू होगी।
High Court: Big decision in the Shri Krishna Janmabhoomi and Shahi Idgah dispute case,
श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस - फोटो : सोशल मीडिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद को सुनवाई योग्य माना है। कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन के स्वामित्व को लेकर हिंदू पक्षकारों की ओर से दाखिल सभी 15 सिविल वादों को पोषणीय मानते हुए मुस्लिम पक्ष की पांचों आपत्तियां खारिज कर दीं। हाईकोर्ट अब 12 अगस्त से सभी मुकदमों का एकसाथ ट्रायल शुरू करेगा। ईदगाह कमेटी इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत ने 154 पेज के फैसले में मुस्लिम पक्ष की ओर से उपासना अधिनियम, विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, परिसीमा अधिनियम, वक्फ अधिनियम और सिविल प्रक्रिया सहिंता के ऑर्डर-29 के नियम-3 के तहत दी गईं सभी दलीलें खारिज कर दीं। कुल 18 में से तीन मामले सुनवाई से पहले ही अलग किए जा चुके हैं। हाईकोर्ट अब 12 अगस्त से वाद बिंदु तय करते हुए सुनवाई करेगा।
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जगन्नाथ मंदिर की सच्चाई
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव, रंजना अग्निहोत्री, प्रवेश कुमार, राजेश मणि त्रिपाठी, करुणेश कुमार शुक्ला, शिवाजी सिंह और त्रिपुरारी तिवारी की ओर से मथुरा जिला अदालत में अर्जियां दाखिल की गई थीं।
याचीगण ने हाईकोर्ट में सभी 18 मामलों के स्थानांतरण की गुजारिश की थी। इस पर न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत ने सभी पत्रावलियां तलब करते हुए 18 अक्तूबर 2023 को एकसाथ सुनवाई शुरू की। हिंदू पक्ष ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ में से शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की ढाई एकड़ जमीन पर कब्जा देने की मांग की थी। कहा था, भगवान श्रीकृष्ण के पोते बृजनाभ ने 5000 साल पहले कटरा केशवदेव में मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे वर्ष 1669 में औरंगजेब ने ध्वस्त कराकर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करा दिया। यहां सिर्फ हिंदुओं को ही पूजा का अधिकार है।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दावा किया था कि शाही ईदगाह मस्जिद में मंदिर होने के प्रमाण मौजूद हैं। मस्जिद की दीवारों पर कमल पुष्प, ओम और शेषनाग की आकृतियां मौजूद हैं, जो सनातन धर्म की प्रतीक हैं। हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट में मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराने की मांग की।
विधिक हैसियत पर उठाए गए थे सवाल_
मुस्लिम पक्ष के वकील तसनीम अहमदी, महमूद प्राचा, नसीरुज्मां और तनवीर अहमद ने मस्जिद परिसर में ऐसे कोई चिन्ह या आकृति मौजूद नहीं होने के दावे किए। साथ ही, वादीगण की विधिक हैसियत पर सवाल उठाए। कहा, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह कमेटी के बीच कोई विवाद नहीं है। विवाद खड़ा करने वाले पक्षकारों का जन्मभूमि ट्रस्ट और ईदगाह कमेटी से कोई लेना देना नहीं है। दावा किया कि ईदगाह स्थल वक्फ की संपत्ति है। 15 अगस्त 1947 को यहां मस्जिद कायम थी। उपासना अधिनियम के तहत अब धार्मिक स्थल का स्वरूप नहीं बदला जा सकता।
सर्वे पर लगी रोक हटवाने को करेंगे सुप्रीम अपील_
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से शाही ईदगाह परिसर के एडवोकेट कमिश्नर से सर्वे पर लगी रोक हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी-24 को एडवोकेट कमिश्नर से सर्वे कराने पर रोक लगाई थी। हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर-23 को सर्वे करने का आदेश दिया था। सर्वे का खाका खिंचने के पहले ही मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। शुरुआत में उन्हें झटका लगा, लेकिन बाद में अदालत ने सर्वे रोक दिया। जैन का यह भी कहना है कि वह हाईकोर्ट के ताजा फैसले के क्रम में सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल करेंगे, ताकि कोई फैसला सुनाए जाने से पहले उन्हें भी सुना जाए।
फैसले को देंगे सुप्रीम कोर्ट में चुनौतीः मुस्लिम पक्ष
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता तनवीर अहमद ने फैसले पर नाखुशी जताई। कहा, हाईकोर्ट ने उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम, वक्फ एक्ट के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है। इस फैसले के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।
हिंदू पक्षकारों की दलीलें
ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ क्षेत्र श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है।
शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।
मुस्लिम पक्षकारों की मुख्य दलील
जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा, मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
उपासना स्थल अधिनियम 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।
प्रीति कुमारी
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