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सबके प्रेम में
सबके प्रेम में
ये जिंदगी कुछ चाहिए, जीवन की इस राह मे, कुछ पा सकू तो क्या बात हो,ये जिंदगी कुछ चाहिए
मार्च 30, 2024
हमने भी अपने आंचल में आंसू खूब भिगोया है
घूंघट, आँगन, मर्यादा में छुप छुप करके रोया हैं।
सबके प्रेम में पलने वाली प्रेम विरह में रोती है
काजल, बिंदियां, सिंदूर , टीका में खुद को खोती है।
प्रीति कुमारी
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