गुरूर कब तक, सांस है जब तक

किस बात का गुरूर हैं
किस चाल का तुम्हें फितुर हैं
क्या पा लिया जिस पर इतरा रहे
मान किसी का ना रख रहे।

क्या ये स्थाई अभिमान है 
जाते ही दुनिया से सब खाक है 
जब तक सास है 
तभी तक अहम का आगाज है ।


जो पा लिया यही का है
ना कर गुरूर, ना कर अहम
जड़ा देख एकपल रूक जड़ा 
बंद आँखो की अपनी खोल पट
जिस बात पर है तु इतना इतरा रहा
कितने ही धुरंधर खाक है
तुमसे भी उंची पद पखर।

अभिमान की गहराई को
तू मिटा दे बस इसी धड़ी
ये आरंभ है तेरे नाश का
ये विनाश है तेरे पाखण्ड का।

व्यवहार तेरा कर्म है
इंसानियत तेरा धर्म है
हर रास्ता है कठिन पर
तू राह अपनी चलते जा
नित नेक काम करते जा।

हर कर्म का हिसाब है
हो रहा तेरा पहचान है
खुदा बैठा है करने गिनती तेरी
हर नेक, बूरे कर्मों का हिसाब है
किस बात का तुम्हें गुरूर है
सब इसी धड़ा पर रह जाएगा 
बस तेरा अच्छा कर्म ही साथ जाएगा।

प्रीति कुमारी




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